योगी के मंत्रिमंडल में महा-बदलाव और भगवा खेमे का नया दावा

समर्पण न्यूज इंडिया
By - Samarpan News
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राजनीतिक गलियारों में दिसंबर की गर्मी
दिसंबर 2025 की शुरुआत के साथ ही उत्तर प्रदेश का मौसम भले ही ठंडा हो रहा हो, लेकिन लखनऊ के 5, कालिदास मार्ग से लेकर दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग तक राजनीतिक तापमान अपने चरम पर है। पिछले 48 घंटे उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए किसी भूचाल से कम नहीं रहे हैं। जैसा कि आपने संकेत दिया है, लखनऊ और दिल्ली के बीच सत्ता के गलियारों में जिस तरह की हलचल मची है, वह साफ इशारा कर रही है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने सबसे महत्वपूर्ण किले, उत्तर प्रदेश, को 2027 के महासंग्राम के लिए अभेद्य बनाने की अंतिम तैयारी में जुट गई है। यह केवल एक सामान्य मंत्रिमंडल विस्तार नहीं, बल्कि योगी सरकार 2.0 का पूर्ण कायाकल्प (Overhaul) है।
इस पूरी कवायद के केंद्र में तीन प्रमुख घटनाएं हैं: योगी मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल, संगठन में बड़े बदलाव, और सबसे चौंकाने वाला नाम जो अब प्रदेश अध्यक्ष की रेस में सबसे आगे निकलकर आया है—साध्वी निरंजन ज्योति। आइए, इस पूरी इनसाइड स्टोरी की परतें खोलते हैं और समझते हैं कि पिछले दो दिनों में बंद दरवाजों के पीछे आखिर क्या खिचड़ी पकी है।
भाग 1: लखनऊ फाइल्स - मैराथन बैठकों का दौर
कहानी की शुरुआत 2 दिसंबर की सुबह से होती है। आमतौर पर शांत रहने वाले मुख्यमंत्री आवास पर गहमागहमी अचानक बढ़ गई। यह सामान्य समीक्षा बैठक नहीं थी। खबरों के मुताबिक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बैक-टू-बैक बैठकें हुईं।
सूत्र बताते हैं कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ हुई बैठक में चर्चा का मुख्य विषय 'सरकार और संगठन के बीच समन्वय' था। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद से ही संघ और भाजपा के बीच जिस तरह की 'फीडबैक रिपोर्ट' तैयार की जा रही थी, अब उस पर अमल करने का वक्त आ गया है। संघ के पदाधिकारियों ने जमीनी स्तर से जो रिपोर्ट दी है, उसमें कई मंत्रियों के प्रदर्शन को लेकर नाराजगी जाहिर की गई है।
इसके बाद, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों डिप्टी सीएम (केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक) के बीच लंबी मंत्रणा हुई। यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि पिछले कुछ समय से सत्ता और संगठन के बीच 'पावर बैलेंस' को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं। इन बैठकों ने यह साफ कर दिया कि अब 'सबका साथ' लेकर ही 2027 की नैया पार लगेगी। दिल्ली दरबार से आए स्पष्ट संदेश के बाद, लखनऊ में फाइलों का दौर शुरू हो गया है—कौन रहेगा, कौन जाएगा, और किसका कद बढ़ेगा, इसका खाका तैयार किया जा चुका है।

भाग 2: मंत्रिमंडल विस्तार या सर्जिकल स्ट्राइक?
योगी मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा नई नहीं है, लेकिन इस बार मामला अलग है। सूत्रों का दावा है कि यह फेरबदल 'सर्जिकल स्ट्राइक' के अंदाज में होगा। चर्चा है कि परफॉर्मेंस के आधार पर रिपोर्ट कार्ड तैयार कर लिया गया है।
कौन खतरे में है?
दिल्ली की हाई-लेवल मीटिंग में उन मंत्रियों की सूची पर लाल स्याही फेर दी गई है जो अपने विभागों में सुस्त रहे हैं या जिनका जनता से संवाद टूट चुका है। खबर है कि 75 पार की उम्र वाले या विवादित बयानों से पार्टी को असहज करने वाले कई दिग्गजों की छुट्टी तय मानी जा रही है। संघ की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि कुछ मंत्रियों की कार्यशैली से कार्यकर्ताओं में हताशा है, और उन्हें बदलना अनिवार्य है।
नए चेहरों की एंट्री:

मंत्रिमंडल विस्तार में सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ध्यान रखा जाएगा। पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक, हर जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश होगी। विशेष रूप से ओबीसी और दलित समुदाय से आने वाले युवा और तेज-तर्रार चेहरों को जगह मिलने की संभावना है। चर्चा यह भी है कि कुछ संगठन के पदाधिकारियों को सरकार में लाया जाएगा और सरकार के कुछ मंत्रियों को वापस संगठन के काम में लगाया जाएगा। यह 'अदला-बदली' 2027 के चुनाव से पहले टीम को फ्रेश लुक देने की कवायद है।

भाग 3: प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी और 'साध्वी' का दांव
अब आते हैं इस पूरी कहानी के सबसे दिलचस्प मोड़ पर—उत्तर प्रदेश भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा? वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से ही नए नाम को लेकर कयासों का बाजार गर्म था। कभी किसी ब्राह्मण चेहरे की चर्चा होती, तो कभी किसी पिछड़े वर्ग के नेता की।
लेकिन पिछले 48 घंटों में दिल्ली से छनकर आ रही खबरों ने सबको चौंका दिया है। आपकी जानकारी के अनुसार, साध्वी निरंजन ज्योति इस रेस में सबसे आगे निकल गई हैं। राजनीतिक पंडितों के लिए यह एक 'मास्टरस्ट्रोक' हो सकता है। आइए समझते हैं क्यों:
  ओबीसी + हिंदुत्व का कॉकटेल: 
साध्वी निरंजन ज्योति 'निषाद' समाज से आती हैं, जो ओबीसी वर्ग का एक बड़ा वोट बैंक है। समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले की काट के लिए भाजपा को एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो पिछड़ा वर्ग से भी हो और जिसकी हिंदुत्ववादी छवि भी प्रबल हो। साध्वी इस पैमाने पर एकदम फिट बैठती हैं।
 महिला कार्ड: 
महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद, भाजपा महिला नेतृत्व को आगे बढ़ाने का संदेश देना चाहती है। यूपी जैसे बड़े राज्य की कमान एक महिला, और वह भी एक साध्वी को सौंपना, आधी आबादी को सीधा संदेश होगा।
 आक्रामक शैली: साध्वी निरंजन ज्योति अपनी तेज-तर्रार भाषण शैली और आक्रामक तेवरों के लिए जानी जाती हैं। विपक्ष, खासकर अखिलेश यादव, का मुकाबला करने के लिए भाजपा को एक ऐसे ही मुखर नेता की जरूरत है जो ईंट का जवाब पत्थर से दे सके।
यदि 14 दिसंबर से पहले उनके नाम का एलान हो जाता है, जैसा कि चर्चा है, तो यह भाजपा की रणनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत होगा। यह दिखाता है कि पार्टी अब 'डिफेंसिव' नहीं, बल्कि 'फ्रंट फुट' पर खेलना चाहती है।
भाग 4: 14 दिसंबर की डेडलाइन और 'खरमास' का गणित
आपने 14 दिसंबर की तारीख का जिक्र किया है, जो बेहद महत्वपूर्ण है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 14-15 दिसंबर के आसपास सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही 'खरमास' शुरू हो जाता है, जिसे शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है। भाजपा, जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों और मुहूर्तों को गंभीरता से लेती है, निश्चित रूप से चाहेगी कि संगठन के शीर्ष पद की घोषणा इस अशुभ काल से पहले हो जाए।
दिल्ली में चल रही बैठकों का दौर इसी डेडलाइन को ध्यान में रखकर तेज किया गया है। अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ बीएल संतोष की बैठकें अंतिम मुहर लगाने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं। माना जा रहा है कि नाम फाइनल हो चुका है, बस सही समय पर घोषणा का इंतजार है। लखनऊ में पार्टी कार्यालय में भी सुगबुगाहट तेज है। कार्यकर्ताओं को संकेत दे दिए गए हैं कि बड़े बदलाव के लिए तैयार रहें।
भाग 5: मिशन 2027 - आगे की राह

इस पूरे घटनाक्रम का लब्बोलुआब यह है कि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों में यूपी में मिली सीटों की कमी को 2027 के विधानसभा चुनाव में किसी भी कीमत पर दोहराना नहीं चाहती। योगी आदित्यनाथ, अमित शाह और मोहन भागवत की तिकड़ी ने जो खाका खींचा है, वह स्पष्ट है:
  सत्ता: काम न करने वालों की छुट्टी और नए ऊर्जावान चेहरों की एंट्री।
 संगठन: साध्वी निरंजन ज्योति जैसे चेहरों के जरिए आक्रामक हिंदुत्व और सोशल इंजीनियरिंग का मेल।
  समन्वय: संघ और सरकार के बीच की खाई को पाटना।
आने वाले कुछ दिन उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए निर्णायक होने वाले हैं। अगर साध्वी निरंजन ज्योति कमान संभालती हैं और मंत्रिमंडल में बड़े बदलाव होते हैं, तो यह तय है कि यूपी का सियासी पारा कड़ाके की ठंड में भी उफान पर रहेगा। लखनऊ से दिल्ली तक की दौड़ अभी थमी नहीं है, और 14 दिसंबर से पहले होने वाला धमाका प्रदेश की राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल सकता है।
निष्कर्ष:
उत्तर प्रदेश में बदलाव की बयार बह नहीं रही, बल्कि आंधी की तरह आ रही है। योगी आदित्यनाथ का सख्त प्रशासन और संगठन का नया कलेवर—ये दोनों मिलकर विपक्ष के लिए 2027 की राह मुश्किल करने की तैयारी में हैं। अब सबकी निगाहें उस आधिकारिक पत्र पर टिकी हैं जो 14 दिसंबर से पहले दिल्ली से जारी होगा और जिसमें नए 'कप्तान' का नाम लिखा होगा।

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